हमें अदाएं दीवाली की ज़ोर भाती हैं! (कविता)

दीप पर्व की शुभकामनाएं/नजीर अकबराबादी

‘हमें अदाएँ दीवाली की ज़ोर भाती हैं ।
कि लाखों झमकें हर एक घर में जगमगाती हैं ।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं

गुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते-फिरते हैं ।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।

मिठाईयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं ।
तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं ।
नबात, सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं ।
तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं ।

जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं ।
तो लौंज खजले यही मसनद लगाए बैठे हैं ।
इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं ।
तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं ।

दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है ।
तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है ।
कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है ।
कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है

अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है ।
दिबाल एक नहीं लीपने से खाली है ।
जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है ।
गरज़ मैं क्या कहूँ ईंट-ईंट पर दीवाली है ।

और चिरागों की दुहरी बँध रही कतारें हैं ।
और हर सू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं ।
हुजूम, भीड़ झमक, शोरोगुल पुकारे हैं ।
अजब मज़ा है, अजब सैर है अजब बहारें हैं ।

नज़ीर’ इतनी जो अब सैर है अहा हा हा ।
फ़क़्त दीवाली की सब सैर है अहा हा ! हा ।
निषात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा ।
जिधर को देखो अज़ब सैर है अहा हा हा ।

खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं

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