निजीकरण के खिलाफ रेलवे की सभी यूनियन अनिश्चितकालीन हड़ताल की तैयारी में

ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन (AIRF), जो रेलवे की सबसे बड़ी यूनियन तथा देश की सबसे बड़ी कर्मचारी यूनियन भी है, ट्रेनों के परिचालन, स्टेशनों, उत्पादन इकाइयों के “निजीकरण” के विरोध में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का विचार कर रही है।

कुछ दिनों पहले नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने 50 स्टेशनों और 150 ट्रेनों के संचालन के निजीकरण को लेकर सचिवों की एक समिति बनाने के लिए पत्र लिखा था इसको लेकर रेलवे यूनियनों में रोष व्याप्त है। यह सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण की दिशा में एक और कदम है। मगर अभी तक रेलवे की यूनियनें निजीकरण के खिलाफ संगठित और निर्णायक संघर्ष और आंदोलन चलाने को लेकर असमंजस में नजर आ रही है।

संघ परिवार समर्थित भारतीय मजदूर संघ ने भी इस सरकार द्वारा निजीकरण के कदम का विरोध किया है। एआईआरएफ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा के अनुसार सरकार के रवैया हमें टकराव के लिए मजबूर कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ मिश्रा यह भी कहते हैं कि, “रेल मंत्री ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को निजी क्षेत्र की भागीदारी के द्वारा रेलवे की ‘सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए’ रेलवे की योजना के बारे में यूनियन को विश्वास में लेने की जिम्मेदारी सौंपी है।”

एआईआरएफ ने बताया कि रेलवे को निजीकरण की ओर धकेला जाना कोई नई बात नहीं है। यूपीए शासनकाल में भी योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने तत्कालीन चेयरमैन ऑफ रेलवे बोर्ड को एक ऐसा ही पत्र लिखा था। लेकिन उस वक्त समिति का गठन नहीं किया गया।

समिति के गठन से एक दिन पहले रेल मंत्री को लिखे पत्र में, एआईआरएफ के मिश्रा ने चेतावनी दी कि, “ट्रेन संचालन में निजी एजेंसियों को शामिल करके, मौजूदा अनुभवी व्यवस्था को नौसिखिया हाथों में सौंपना भारतीय रेलवे की औद्योगिक शांति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है क्योंकि इससे रेलवे कर्मचारियों को जबरदस्त नुकसान हो रहा है।
समिति का गठन नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत द्वारा रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव को लिखे जाने के एक दिन के भीतर किया गया था, जिसमें कांत ने निजीकरण के माध्यम से 150 ट्रेनों को चलाने और रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण की धीमी गति का उल्लेख किया था।

कांत ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को सूचित किया कि उन्होंने रेल मंत्री पीयूष गोयल के साथ “मुद्दे” पर चर्चा की है यानी निजीकरण के मुद्दे पर सरकार पूरी तरह सहमत है।

एआईआरएफ ने कहा कि लाभ कमाने वाली गाड़ियों को निजी एजेंसियों को सौंपना भारतीय रेलवे की वित्तीय सेहत को और खराब करेगा। यूनियन प्रतिनिधि ने बताया कि कि रेलवे पहले से ही रेलवे की उत्पादन इकाइयों में वैश्विक स्तर की तुलना में सस्ती कीमतों पर निर्मित अर्ध-उच्च गति वाली ट्रेनों का संचालन कर रहा है।

मिश्रा ने कहा कि सीआरबी के साथ विचार-विमर्श के बाद, एआईआरएफ भविष्य की कार्रवाई के लिए अपनी कार्यसमिति की बैठक बुलाएगा। “कमोबेश, कर्मचारी हड़ताल के लिए सहमत हो गए हैं। हड़ताल के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के अनुसार, संघ को कर्मचारियों का एक गुप्त मतदान करना होगा, जहाँ कम से कम आधे कर्मचारियों को हड़ताल के पक्ष में मतदान करना होगा।

एआईआरएफ के मिश्रा के अनुसार रेलवे के सभी कर्मचारियों को कवर करने के लिए, छह पालियों में हड़ताल करनी होगी। अन्यथा, रेलवे कर्मचारियों के एक हिस्से को सरकार द्वारा जानबूझकर निशाना बनाया जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में, रेलवे कर्मचारियों ने 2016 और 2013 में अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए मतदान किया है। लेकिन, रेलवे की आखिरी अनिश्चितकालीन हड़ताल लगभग 45 साल पहले 1974 में हुई थी। बीएमएस ने भी नए कदम का विरोध किया है। बीएमएस का कहना है कि नीति आयोग को भारतीय अर्थव्यवस्था की जमीनी स्थिति का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है।

रेलवे के निजीकरण के विभिन्न चरणों और मामलों जैसे कि स्टेशन के फास्ट-ट्रैक आधुनिकीकरण, नीलामी दस्तावेजों को मंजूरी और परियोजनाओं को निजी हाथों को सौंपने के लिए बनाई गई समिति में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, आर्थिक मामलों के विभागीय सचिव विभाग, आवास और शहरी मामले मंत्रालय के सचिव शामिल है।

बिजनेस लाइन से साभार

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