चे ग्वेरा की कविता उनके शहादत दिवस पर !

(आज से ठीक 91 बरस पहले 14 जून 1928 को चे ग्वेरा का जन्म अर्जेंटीना में हुआ था। बचपन में उनके माता पिता उन्हें प्यार से टेटे बुलाते थे। चे का वास्तविक नाम अर्नेस्टो ग्वेरा था जो उनके पिता के अर्नेस्टो ग्वेरा लिंच के नाम पर रखा गया था लेकिन क्यूबाई क्रांति के दौरान अर्नेस्टो ग्वेरा ने अपने नाम को चे ग्वेरा कर लिया। चे का अर्थ होता है दोस्त, जो बाद में उनकी पहचान बन गया। वास्तव में चे ग्वेरा विश्व के सर्वहाराओं के दोस्त बन गए। उन्होने खुद कहा, “अगर आप हर अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद करते है तो आप मेरे कामरेड हो।”

चे ग्वेरा जिसे फ्रांस के महान दार्शनिक और अस्तित्ववादी दर्शन के प्रणेता ज्यां-पॉल सार्त्र ने ‘चे ग्वेरा’ को ‘अपने समय का सबसे पूर्ण पुरुष’ जैसी उपाधि दी थी। वही चे ग्वेरा जिसे टाइम मैगज़ीन ने 20वीं सदी के 100 महान लोगों की सूची में शामिल किया था। वही चे ग्वेरा जिसे लैटिन अमेरिका के सर्वहाराओं का नेता माना जाता है। वही चे ग्वेरा जिसके मरने के बाद भी अमेरिका और अन्य पूंजीवादी देश उसके नाम से कांपते हैं।

चे ग्वेरा का उद्देश्य सिर्फ क्यूबा को अमेरिकी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद से बचाना नहीं था। वह समस्त लैटिन अमेरिका और विश्व को पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के दानव से छुटकारा दिलाना चाहते थे। इसी कारण वे कांगो में भी लड़े और बाद में बोलिविया में लड़ते हुए 9 अक्टूबर, 1967 (उम्र 39) को अमेरिकी पूंजीवादियों के रक्षक सीआईए के हाथों मारे गए। उनके दोनों हाथों को काट दिया गया, बाद में बोलिविया के आंतरिक मामलों के मंत्री एंटोनियो अरगूडास ने चे की जेल डायरी और उनके हाथ क्यूबा पहुंचाए थे।

चे की रुचि बचपन से ही काव्य और कला जैसे उन्नत विषयों में थी। उन्हें बादलेयर, गोर्सी लोर्का, एंतोंटनियों मचाडों और पाब्लो नेरुदा की कविताओं से बहुत प्रेम था। वह हमेशा स्पेनिश कवि लियान फेलिप के काव्य रेंडीयर को सिरहाने बिस्तर पर रखते थे। उन्होंने स्वयं भी कविता लिखने का प्रयास किया लेकिन वह अपने को एक असफल कवि कहते थे। उन्होंने अपने साथी फिदेल कास्त्रो से प्रथम भेंट के बाद ‘फिदेल के सम्मान में गीत’ लिखा था जो चे ग्वेरा की मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ)

वह गीत इस प्रकार है –

फिदेल के लिए एक गीत / चे ग्वेरा

आओ चलें,
भोर के उमंग-भरे द्रष्टा,
बेतार से जुड़े उन अमानचित्रित रास्तों पर
उस हरे घड़ियाल को आज़ाद कराने
जिसे तुम इतना प्यार करते हो ।

आओ चलें,
अपने माथों से
–जिन पर छिटके हैं दुर्दम बाग़ी नक्षत्र–
अपमानों को तहस–नहस करते हुए ।

वचन देते हैं
हम विजयी होंगे या मौत का सामना करेंगे ।
जब पहले ही धमाके की गूँज से
जाग उठेगा सारा जंगल
एक क्वाँरे, दहशत-भरे, विस्मय में
तब हम होंगे वहाँ,
सौम्य अविचलित योद्धाओ,
तुम्हारे बराबर मुस्तैदी से डटे हुए ।

जब चारों दिशाओं में फैल जाएगी
तुम्हारी आवाज़ :
कृषि-सुधार, न्याय, रोटी, स्वाधीनता,
तब वहीं होंगे हम, तुम्हारी बग़ल में,
उसी स्वर में बोलते ।

और जब दिन ख़त्म होने पर
निरंकुश तानाशाह के विरुद्ध फ़ौजी कार्रवाई
पहुँचेगी अपने अन्तिम छोर तक,
तब वहाँ तुम्हारे साथ-साथ,
आख़िरी भिड़न्त की प्रतीक्षा में
हम होंगे, तैयार ।

जिस दिन वह हिंस्र पशु
क्यूबाई जनता के बरछों से आहत हो कर
अपनी ज़ख़्मी पसलियाँ चाट रहा होगा,
हम वहाँ तुम्हारी बग़ल में होंगे,
गर्व-भरे दिलों के साथ ।

यह कभी मत सोचना कि
उपहारों से लदे और
शाही शान-शौकत से लैस वे पिस्सू
हमारी एकता और सच्चाई को चूस पाएँगे ।
हम उनकी बन्दूकें, उनकी गोलियाँ और
एक चट्टान चाहते हैं । बस,
और कुछ नहीं ।

और अगर हमारी राह में बाधक हो इस्पात
तो हमें क्यूबाई आँसुओं का सिर्फ़ एक
कफ़न चाहिए
जिससे ढँक सकें हम अपनी छापामार हड्डियाँ,
अमरीकी इतिहास के इस मुक़ाम पर ।
और कुछ नहीं ।

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