मैं ज़िन्दा हूँ !

एक ऐसी कहानी, जहाँ ज़िन्दा लोगों को अपने को ज़िन्दा साबित करने की लड़ाई लड़नी पड़ रही है!

लंबे संषर्ष के बाद सरकारी अभिलेखों में मृतक से जिंदा हुए मृतक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल बिहारी मृतक पिछले लगभग 25 सालों से अपने जैसे लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं। अब उन्होंने जन न्याय के लिए जनता, सरकार को सावधान करने, जागरूक होकर वर्तमान और स्थाई पतों के लिए सही साक्ष्य बनाने, पैतृक भूमि व मकान मालिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर जन कल्याण करने लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

मुर्दा लोग : दर्द भरी दास्तान

भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में पन्द्रह साल की उम्र के लाल बिहारी नाम के एक किसान ने 1976 में कर्ज के लिए बैंक में दरख्वास्त दी ।

उसे कर्ज देने से मना कर दिया गया। सिविल रजिस्ट्री के मुताबिक लाल बिहारी मर चुका था इसका कोई मतलब नहीं था कि वह सांसे ले रहा था। डेथ सर्टिफिकेट में बहुत साफ लिखा था वह सिर्फ मर ही नहीं चुका था उसकी जमीन का टुकड़ा अब उसके चाचा की मिल्कियत में था।

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तब से लाल बिहारी सड़कों पर सोता, कूड़ेदान से बीन कर खाता, बेअंत कतारों में दिन रात खड़ा इंतजार करता, एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर का चक्कर लगाता, फार्म भरता, दस्तख़त करता, आवाज़ उठता खैराती संस्थाओं से मदद की गुहार लगता रहा। एक बार एक वकील ने उसे सलाह दी कि वह खुद को फाँसी लगा ले क्योंकि आधिकारिक रजिस्ट्री को सही करना तो नामुमकिन है। आखिर लाल बिहारी यह कैसे साबित करता कि वह ज़िंदा दिखने का कोई खेल नहीं कर रहा है?

उसने जाना की एक मुर्दा आदमी के लिए नौकरी पाना या बीबी तलाशना कितना मुश्किल है। और उसने यह भी जाना की वह अकेला नहीं है। भारत में अनेकों मरे हुए जिंदा लोग हैं।

एक बीघा जमीन के लिए मृत बताया

राम अवतार की एक बीघा जमीन को उनके ही रिश्तेदारों ने 2005 में उनको सरकारी दस्तावेजों में मृत दिखाकर अपने नाम करवा लिया। लंबी लड़ाई के बाद 2013 में उनका नाम खतौनी व परिवार रजिस्टर में फिर से दर्ज हुआ। जमीन पर सरकारी दस्तावेज में तो उनके नाम दर्ज हो गया लेकिन कब्जा अभी तक नहीं मिला है।

राजस्‍व दस्‍तावेजों में मृत लोगों की संख्‍या पूर्वांचल में कम नहीं है। ये वे लोग हैं जो सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार के चलते जिंदा व्यक्तियों को राजस्व दस्तावेज में मृत दिखाकर जमीन हड़पने वाले गैंग के शिकार हो गए हैं। अक्‍सर यह धोखा उनके नजदीकी और परिवार के सदस्‍य ही करते हैं।

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जिंदा साबित करने के लिए कई तरह के आन्दोलन

इस संघ के संस्‍थापक लाल बिहारी यादव जब 21 साल के थे तो उनके रिश्तेदारों ने मुर्दा घोषित कर दिया। 30 जुलाई, 1976 को राजस्व रेकॉर्ड में मृत घोषित होने के बाद लालबिहारी ने अपने को जिंदा होने का सबूत देने के लिए राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से लेकर बच्चे के अपहरण तक की घटना को अंजाम दिया।

खुद को जिंदा साबित करने के लिए उन्होंनें कानूनी लड़ाई लड़ी, यूपी विधानसभा में पर्चे फेंके और गिरफ्तार हुए, पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए आवेदन किया। सवाल यह था की कागजों में मृत आदमी पर मुक़दमा कैसे चले? इन्हीं स्थितिओं में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें जिंदा घोषित कर दिया।

मृतक जीवित दिवस पर कर्मकांड करते संघ के लोग

मृतक संघ की स्थापना

18 साल के संघर्ष के बाद, उन्हें 30 जून 1994 को लाल बिहारी को जीवित घोषित कर दिया गया था। अपनी हिफाज़त और अपने जैसे लोगों को न्याय दिलाने के लिए कोई यूनियन नहीं होने की वजह से लाल बिहारी ने 2014 में उत्तर प्रदेश मृतक संघ की स्थापना की जो दुनिया में मरे हुए लोगों की पहली यूनियन है। संघ का कहना है कि सरकारी भ्रष्‍टाचार और अपनों के धोखे से पीड़ित लोगों ने कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मृतक संघ बनाया है।

अपने 19 वें मृतक पुनर्जन्म दिवस पर 30 जून, 2013 को आजमगढ़ में जीते जी मृत घोषित कर दिये गये लोगों की याद में एक स्मारक का शिलान्यास करवाया।

नाम के आगे लगाते हैं मृतक

लाल बिहारी ने बताया कि जब अदालत में उनके केस की सुनवाई चल रही थी तब उन्हें ‘लाल बिहारी मृतक हाजिर हो’ कहकर ही पुकारा जाता था। बस उसके बाद से ही उन्होंने अपने नाम के आगे मृतक शब्द जोड़ लिया और ऐसे लोगों के लिए संस्था बनाई जो जिंदा होते हुए भी राजस्व रिकॉर्ड में मृत घोषित किए जा चुके हैं।

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चुनाव लड़ने का भी किया था ऐलान

85 साल के रामअवतार यादव ने वर्तमान लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। इससे पहले वे 2014 के लोक सभा चुनाव में आजमगढ़ संसदीय सीट से मुलायम सिंह के खिलाफ लड़ने की तैयारी कर चुके थे। उनकी कोशिश बेकार गई क्‍योंकि उनका पर्चा खारिज हो गया।

संघ के अध्यक्ष लाल बिहारी का कहना है, “मृतक संघ की तरफ से राम अवतार यादव का चुनाव मैदान में लड़ने का एक मात्र मकसद है देश में जिंदा होते हुए भी मुर्दा घोषित होकर पैतृक संपत्ति से बेदखल हो गए लोगों के दर्द को समझाना।”

इस संघर्ष पर बन रही है फिल्म

फिल्म निर्माता, निर्देशक व एक्टर सतीश कौशिक लालबिहारी के जीवन पर ‘कागज’ फिल्म बना रहे हैं। पहले इस फिल्म का नाम ‘मैं जिंदा हूँ’ था। दूसरी ओर  टाइम्स आफ इंडिया वरिष्ठ पत्रकार प्रवीन कुमार ‘मृतक’ की जीवनी पर किताब लिख रहे हैं।

जिंदा को मुर्दा बनाने वाले कर्मचारियो पर कार्यवाही के आदेश

संघर्षों के परिणामस्वरूप ताजा घटना में आज़मगढ़ के रामअवतार और रामआधार को राजस्व अभिलेखों में फर्जी तरीके से मृतक दर्शाने की शिकायत जनसुनवाई के दौरान जिलाधिकारी से की गई थी। जिलाधिकारी ने एसडीएम सदर को उक्त प्रकरण की जांच करने के निर्देश दिए थे। जांच में आरोप सही पाए जाने पर कर्मचारी पन्नालाल और राजनरायन सिंह के खिलाफ तत्काल एफआईआओर करने के निर्देश कोतवाली जीयनपुर को दिए हैं।

एसडीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्राम गोड़इतपट्टी, कसड़ा आइमा व कसड़ा खालसा पर गलत आदेश 4 जुलाई 2019 को तत्कालीन लेखपाल पन्नालाल और राजस्व निरीक्षक राजनरायन सिंह ने किया था। ग्राम अमलोनी के संबंध में गलत आदेश छह जुलाई 2019 को तत्कालीन लेखपाल रामविजय शाही और राजस्व निरीक्षक राजनरायन सिंह ने किया था। इनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही प्रारम्भ कर दी गई है। तत्कालीन लेखपाल रामविजय शाही सेवानिवृत्त हो चुका है और उसकी मौत हो चुकी है।

तत्कालीन राजस्व निरीक्षक राजनरायन सिंह तहसील सदर से सेवानिवृत्त हो चुका है। दोषी कर्मचारी पन्नालाल और राजनरायन सिंह के खिलाफ एफआईआर के निर्देश कोतवाली जीयनपुर को दिए गए हैं। साथ ही डीएम ने एसपी को इस प्रकरण में 2014 में दर्ज मामले में पुनर्विवेचना तथा तत्कालीन विवेचक की जांच के आदेश दिए हैं। एसपी की ओर से भी जांच शुरू कर दी गई है।

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प्रधान मंत्री मोदी को भेजा पत्र

मृतक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालबिहारी मृतक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सितम्बर, 2019 में पत्र लिखा है। 

प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में लालबिहारी ने लिखा है कि प्रदेश व देश की कुछ गरीब जनता मजदूर अपने जीविकोपार्जन व रोजी-रोटी के लिए घरों से देश के विभिन्न शहरों व विदेश में नौकरी व मजदूरी करने जाते हैं। परिवार सहित शहर के वर्तमान पते का आधारकार्ड, राशनकार्ड, जाति व निवास प्रमाण पत्र व परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज करा लिए हैं। गांव के स्थाई पते को भूल गए हैं। पिता की मृत्यु के बाद पैत्रिक भूमि व मकानों पर वरासत के लिए ग्राम प्रधान से लेकर विकास खंड, तहसील, चकबंदी कार्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा जारी संबंधित साक्ष्य प्रमाण पत्र देने के बाद पुत्र, पुत्रियों व पत्नी का नाम खसरा-खतौनी में दर्ज किया जाता है। स्थाई निवास साक्ष्य न देने पर अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ता है।

पत्र के माध्यम से यह भी आरोप लगाया है कि सरकारी विभागों के अभिलेखों में पूर्व से ही धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी से दूसरों की भूमि व मकानों पर साजिशन फर्जी नाम दर्ज कर दिया जाता है।

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जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर, उनके साक्ष्यों का नष्ट कर भूमि व मकानों का हड़प लिया गया है। आए दिन गांव, कस्बा व शहर में विवाद, हत्या, मुकदमेबाजी के कारण अपराध में वृद्धि हो रही है। काफी संख्या में वादी-प्रतिवादी कानूनी व न्यायिक प्रक्रिया के मकडज़ाल में फंसकर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते-लगाते भीख मांगने लगते हैं। इसलिए भारत सरकार को राष्ट्र की खुशहाली व शांति के लिए संबंधित विषयों पर जागरूक होकर सामाजिक न्याय, मानवाधिकारों की रक्षा, जीविकोपार्जन, जीवन रक्षा, संविधान व न्यायालय के सम्मान में सावधान व जागरूक होने की आवश्यकता है।

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