सामाजिक सुरक्षा कोड बिल मजदूरों को लूटने का नया तरीका

सरकार की नजर ईपीएफओ में जमा 8.5 लाख करोड़ पर

पहले किये वायदे के अनुसार सरकार ने श्रम कानूनों में सुधार का सिलसिला को आगे बढ़ाते हुए, तीसरे कोड का मसविदा 19 सिंतबर को जारी कर दिया, ड्राफ्ट 17 सितम्बर को श्रम मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था व 25 अक्टूबर 2019 तक इस ड्राफ्ट पर जनता से सुझाव मांगे गए हैं, जिसके बाद अंतिम मसविदा तैयार किया जाएगा।

वैसे, किसी को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि जनता के सुझाव को इस बिल में जोड़ा जाएगा, यह केवल कुछ लोगों को भरमाने और पूंजीवादी व्यवस्था की न्यायपसन्दी के लिए है, कोड जिसका नाम सामाजिक सुरक्षा कोड है, वह मौजूदा 8 प्रावधानों को खत्म कर एक बिल में समाहित किया जाएगा।

8 श्रम कानून को खत्म करेगा यह कोड

(1) The Employees’ Compensation Act, 1923

(2) The Employees’ State Insurance Act, 1948

(3) The Employees’ Provident Fund and Miscellaneous Provisions Act, 1952

(4) The Maternity Benefit Act, 1961

(5) The Payment of Gratuity Act, 1972;

(6) The Cine Workers Welfare Fund Act, 1981

(7) The Building and Other Construction Workers Cess Act, 1996

(8) The Unorganised Workers’ Social Security Act, 2008

सामाजिक सुरक्षा के नाम पर असल मकसद पी एफ और ईइसआई जैसे सुरक्षा को खत्म कर पूँजीपतियों के हवाले कर देना है। ईपीएफओ में जमा, 8.5 लाख करोड़ रुपये की विशाल धनराशि पर सरकार ने निगाह वर्षों से लगा रखी थी। कुछ साल पहले जब पीएफ नियमों में बदली करने पर वो विचार कर रही थी, तब मजदूरों के आक्रामक प्रदर्शन के आगे उसे अपने कदम वापिस लेने पड़े थे, लेकिन मंशा उसकी बरकरार रही।

अब इस राशि को पूँजीपतियों के हवाले करने का नया रास्ता इस कोड के जरिये ढूंढ लिया गया है। पेंशन, रिटायरमेंट और इन्शुरन्स जिसमे ईपीएफ और ईएसआई शामिल है उनके निगमीकरण की बात बिल में की गई है। बिल में निगम शब्द को डाला गया है, जो अब तक चल रहे स्वायत्त संस्थान से अलग होगा। निगमीकरण निजीकरण करने की पहली प्रक्रिया है।

ईपीएफओ के चेयरमैन, केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएंगे, इनकी नौकरी तब तक रहेगी जब तक सरकार इनके काम काज से खुश रहेगी । मतलब अपनी नौकरी चलाने के लिए इन्हें सरकार को हर हाल में खुश रखना होगा। इसके तहत अब सरकार को इन निगमों में जमा धनराशि निकलने में आसानी होगी, जैसा अभी हाल में आरबीआई से सरकार ने 1.70 लाख करोड़ निकले थे।

वैसे भी ईपीएफ अब शेयर बाजार में भी निवेश करेगा, इसकी घोषणा भी कर दी गयी है। प्राइवेट फंड मैनेजरों जैसे बिचैलियों के जरिये भी ईपीएफ की राशि को बाजार में लगाया जाएगा, इसके लिए प्रावधान किए जा रहे हैं। पहले ये केवल सुरक्षित माने जाने वाले बांड, डिबेंचर इत्यादि में ही निवेश करता था।

मतलब अब मजदूरों का पैसा बाजार जोखिमों के अधीन होगा। ईपीएफ पर भी शेयर मार्केट के डूबने से दिवालिया होने का खतरा मंडराता रहेगा। ईपीएफ, ईएसआई और 6 अन्य केंद्रीय कल्याणकरी स्कीमों को पूरी तरह से बंद करने का प्रावधान भी इस बिल में है। यह नया कोड बिल एक और अत्यंत महत्वपूर्ण कानून को पूरी तरह से नख-दंत विहीन करने वाला है।

इस बिल के आने के बाद भवन व अन्य निर्माण मजदूर सेस कानून खत्म हो जाएगा। भवन व निर्माण मजदूर कानून, इस क्षेत्र से जुड़े मजदूरो के संघर्ष के बाद पारित किया गया था। जिसके तहत केंद्रीय वेलफेयर बोर्ड और राज्य वेलफेयर बोर्ड की स्थापना की गई। जिसके तहत कीच मजदूरों को थोड़ा फायदा भी हो रहा था।

लेकिन अब इन वेलफेयर बोर्डों में पंजीकृत करीब 4 करोड़ मजदूरों का पंजीकरण अधर में लटक गया है। नए बिल के आने के बाद 36 राज्यों में कार्यरत वेलफेयर बोर्ड भी बंद हो जाएगा। अब नए पंजीकरण का काम बोर्ड ना कर के प्रशासन के जिम्मे डाल दिया गया है। लेकिन इस काम के लिए क्या अलग से कुछ लोगों को उत्तरदायित्व दिया जाएगा या किस प्रकार से पूरी प्रक्रिया की जाएगी, इस पर बिल में भारी अस्पष्टता है, जिससे सरकार को असली मंशा जाहिर होती है।

वेलफेयर बोर्ड के पास सेस से जमा करीब 40 हजार करोड़ की रकम जमा है, जिसमे 11000 करोड़ खर्च हुआ है। बाकि की राशि अब केवल निर्माण मजदूरों के लिए ना होकर एक सामान्य कोष में डाल दिया जाएगा। बाकी की शेष राशी को केंद्र सरकार पूँजीपतियों की तथाकथित ‘पेशेवर’ विशेषज्ञों को बाजार में निवेश करने के लिए, देने की भी बात की जा रही है।

मजदूर का पैसा और मुनाफा शेयर बाजार के सटोरियों का और अगर नुकसान हुआ तो उसे मजदूरों के मत्थे मढ़ दिया जाएगा। मजदूरों द्वारा सेस में जमा करने वाली राशि मे भी बदलाव किया गया है। अब अगर किसी मजदूर को इन सुविधाओं का लाभ लेना है तो उसे 12.5 प्रतिशत सेस भरना होगा।

असंगठित क्षेत्र में काम, असल में मिलने वाली मजूरी और मजदूरों की स्थिति सभी को मालूम है। फिर इतनी बड़ी रकम सेस में रखने का क्या औचित्य है। क्या इस कदम से सरकार ने यह बात नहीं बता दी कि वह निर्माण मजदूर के ना केवल कानून को खत्म किया है, बल्कि उसने मजदूरों को भी बतला दिया है, कि कोई भी कल्याणकारी कदम उसके लिए अब नहीं है।

पहले के पारित दो बिल और अब इस बिल से यह साबित होता है कि सरकार ने मजदूरों के हित को पूँजीपतियों के हवाले कर दिया है, आने वाले दिनों में मजदूरों की स्थिति गुलाम जैसी होने वाली है। अपने बहुमत के दम पर और कमजोर दिशाहीन विपक्ष, सरकार की मजदूर विरोधी कदम उठाने पर जरा भी संकोच नहीं हो रहा।

पूंजीवाद के गहराता संकट और देश के पूँजीपतियों के गिरते मुनाफा ने भी सरकार को मजदूर विरोधी कानून पारित करने पर मजबूर कर दिया। भारतीय पूँजीपतियों का मुनाफा लगातार गिरता जा रहा है, ऐसे में मजदूरों का शोषण को तीव्र किये बिना लाभ को बढ़ाना नामुमकिन है।

देश में वैसे भी कानून की कितनी कद्र है यह हम सभी जानते हैं, लेकिन फिर भी सरमायेदारों को इन कानून के कारन मुकदमेबाजी का डर सताता रहता था। इसलिए, इन्हें खत्म करने की कवायद काफी सालों से चल रही थी, जिसे इस सरकार ने पूरी कर दी। इन कानूनों में बदलाव की जरूरत क्यों हुई?

इसकी व्याख्या खुद इन विधेयकके उद्देश्यों में बताया गया है, इनको बनाने के पीछे मंशा है कि ये निवेशकों की सहूलियत और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए निवेश को आकर्षित करने में मदद करेंगी। मतलब मजदूर के कानून मालिकों के हितों को साधने के लिए बनाए गए हैं।

विकास के फर्जी नारे के पीछे असल मकसद मजदूरों को हर अधिकार से वंचित कर उनके ऊपर होने वाले शोषण और उत्पीड़ित को खुली छूट देना है। सरकार केवल अमीरों के बारे में चिंतित है और कानूनों में संशोधन या नए कानून केवल पूँजीपतियों को फायदा देने के लिये बनाये जा रहे हैं। देशभक्त सरकार की असली भक्ति किन के साथ है यह बात किसी से छुपी नहीं है।

(दामोदर – वर्कर्स यूनिटी से साभार एवं संपादित)

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