लगातार चौथे माह अशोका लेलैंड में 18 दिनों का शटडाउन

मंदी की साया : ऑटोमोबाइल सेक्टर के उद्योगों में काम बंदी

ज़ाहिर है कि काम-बंदी की सबसे अधिक मार उसकी वेंडर कंपनियों और अस्थाई-ठेका व ट्रेनी मज़दूरों पर पड़ती है। यही नहीं असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की भारी आबादी भी इससे प्रभावित है, जिसके आँकडे लगभग दब से गये हैं।

पंतनगर (उत्तराखंड)। मंदी की साया : ऑटोमोबाइल सेक्टर के उद्योगों में काम बंदी (ले-ऑफ), शटडाउन की स्थिति लगातार बनी हुई है। ऑटो सेक्टर की प्रमुख कंपनी अशोक लीलैंड ने उधम सिंह नगर के श्रम विभाग को सूचना दी है कि पंतनगर प्लांट में 5 से 22 अक्टूबर तक मंदी के कारण उत्पादन बंद रहेगा। कंपनी का कहना है कि इस अवधि का भुगतान श्रमिकों की अवकाश को एडजस्ट करके कराया जाएगा। यह जुलाई से लगातार चौथे माह की काम बंदी है।

हालत बेहद बुरे हैं, मोदी सरकार की तमाम हिकमतें नाकाम हैं… अशोक लेलैंड सहित तमाम कम्पनियों में लगातार जारी काम बन्दी पर ‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका के ताजा अंक की सम्पादकीय यहाँ प्रस्तुत है।

कंपनियों में layoff कार्टून के लिए इमेज परिणाम

कम्पनियों में कामबन्दी

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देश के औद्योगिक क्षेत्र के हालात बेहद गम्भीर हैं। ऑटोमोबाइल क्षेत्र पिछले 20 साल में सबसे बदतर स्थिति का सामना कर रहा है। उत्पादन में भारी गिरावट से साढ़े तीन लाख से ज्यादा नौकरियां जा चुकी हैं। पहले मारुती सुजुकी फिर अशोक लेलैण्ड, टाटा, हीरो और अब महिंद्रा ने भी अपने कारखाने बंद करने का निर्णय लिया है।

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अशोक लेलैंड में तीसरे माह भी कामबंदी

माह सितम्बर लगातार तीसरा महीना है जब हिंदुजा समूह की प्रमुख कंपनी अशोक लेलैंड ने अपने वाहनों के उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया है। उसने अपने पाँच कारखानों – एन्नोर में 16 दिन, होसुर (तमिलनाडु) में पाँच दिन, अलवर (राजस्थान) में 10 दिन, भंडारा (महाराष्ट्र) में 10 दिन और पंतनगर (उत्तराखंड) इकाई में 18 दिन – ‘नो वर्किंग डेज’ रखने की घोषणा की है। इससे पूर्व उसने पिछले जुलाई और अगस्त माह में भी उत्पादन ठप रखा था। यही नहीं, वह चेन्नई प्लांट में वीआरएस भी प्रस्तावित कर चुका है। उसने कंपनी के भीतर कार्यरत सहायक कंपनियों को 30 फीसदी तक कास्ट कटिंग के बहाने मैन पॉवर घटाने का फरमान जारी किया था।

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टाटा मोटर्स पंतनगर प्लांट भी बंद

टाटा मोटर्स के पंतनगर प्लांट में पुनः 12-15 सितम्बर को ब्लॉक क्लोजर है। इससे पूर्व 11 से 20 अगस्त तक ब्लॉक क्लोजर रहा। टाटा से जुड़ी सभी वेंडर कंपनियां भी बंद है। यही हाल टाटा के जमशेदपुर से लेकर पुणे तक सभी प्लांटों की है।
दरअसल ब्लॉक क्लोजर ले-ऑफ जैसा प्रावधन है, जो केवल टाटा में कामबंदी के लिए अपनी मर्जी का क़ानून है, जिसमे आधी छुट्टी स्थाई श्रमिकों की जाती है, बाकी भारी संख्या में कार्यरत अस्थाई के लिए ‘नो वर्क नो पे’ होता है।

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चौतरफा बंदी-छँटनी का कहर

बंदी-छँटनी का यह सिलसिला ऑटो क्षेत्र की दूसरी कम्पनियों में भी हैं। गुड़गांव में मारुति ने 3,000 मज़दूरों को नमस्ते कहा, हीरो मोटोकॉर्प ने 4 दिनों के लिए उत्पादन बंद किया। महिंद्रा ऐण्ड महिंद्रा मौजूदा तिमाही में अपने वाहन कारखानों में आठ से 17 दिन तक उत्पादन बंद रखेगी। एचडीआईएल 410वीं रियल एस्टेट कंपनी है जो दिवालिया प्रक्रिया में है। रियल एस्टेट सेक्टर के ख़राब प्रदर्शन से ईंट, स्टील व इलेक्ट्रिकल्स जैसे संबद्ध उद्योग भी प्रभावित हैं। कोयला, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में गिरावट के बाद कोर सेक्टर धीमा हो गया है। खुदरा उत्पादन, हीरा व्यापार, गारमेंट सेक्टर, रीयल स्टेट, खाद्य पदार्थों से लेकर जोमैटो जैसी होम डिलेवरी कम्पनियां और सेवा क्षेत्र भी इसकी जद में हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था फसल की अपर्याप्त कीमतों से ग्रस्त है। 2017-18 में बेरोजगारी 45 साल के उच्च स्तर पर रही।

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सबसे बड़ी मार ठेका श्रमिकों पर

ज़ाहिर है कि काम-बंदी की सबसे अधिक मार उसकी वेंडर कंपनियों और अस्थाई-ठेका व ट्रेनी मज़दूरों पर पड़ती है। यही नहीं असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की भारी आबादी भी इससे प्रभावित है, जिसके आँकडे लगभग दब से गये हैं।

मोदी दौर की उपलब्धि के ये ताजा उदाहरण हैं! कश्मीर से अयोध्या तक, 370 से राम मंदिर तक के खेल के शोर में खड़ी यह एक नंगी सच्चाई है।

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‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका सितम्बर-अक्टूबर, 2019 की सम्पादकीय

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