भगत सिंह के बारे में एनडीटीवी का तथ्यहीन लेख शर्मनाक है!

गैर जिम्मेदार प्रसारण के लिए एनडीटीवी अविलम्ब क्षमा याचना करे

भगतसिंह की विरासत के हमलावरों को पहचानों-2

शहीदे आज़म भगत सिंह के जन्म दिवस (28 सितम्बर) पर

शहीदे आज़म भगत सिंह की क्रान्तिकारी छवि को बिगाड़ने की किस तरह कुत्सित साजिशें चल रही हैं, इसकी ताजा कड़ी है एनडीटीवी में प्रकाशित यह लेख…। वरिष्ठ साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी की यह त्वरित टिप्पड़ी पढ़ें…।

यह एक स्क्रीन शॉट है एनडीटीवी पर 27 सितम्बर 2019 को प्रसारित एक खबर का जिस पर written by Renu Chauhan लिखा है। इसका शीर्षक है ‘प्रेमी, पागल और कवि एक ही मिट्टी के बने होते हैं’ : भगतसिंह के 10 शानदार विचार।

इस ख़बरनामे में लिखा है कि 12 साल की उम्र में उन्होंने (भगतसिंह) अपनी आंखों के सामने जलियांवाला हत्याकांड देखा।भगतसिंह के जीवन से जोड़ी गई यह ऐतिहासिक कथा पूरी तरह काल्पनिक है।

इसी खबर में आगे और भी झूठी स्थापनाओं का खुलासा होता है जब Renu Chauhan ने दर्ज किया है कि ‘अपने हर भाषण में (भगतसिंह ने) इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए’। अब इनसे इतिहास के इस तथ्य के बारे में कौन दरयाफ्त करे कि भगतसिंह ने अपने जीवनकाल में कितने भाषण दिए जिनमें ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाने का आपने जिक्र किया है ?

भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली (वर्तमान संसद) में बम और पर्चे फेंकते हुए पहली बार ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा बुलंद किया था जो जनता की स्मृति में गहरे तक पैठ गया।

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अब आगे तो और भी हद हो गई जब Chauhan ने लिखा है कि ‘भगतसिंह ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया।’

जानना होगा कि काकोरी की ऐतिहासिक घटना 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 नौजवानों ने सम्पन्न की थी जिससे भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का कोई वास्ता नहीं था। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की सक्रियता का समय तो काकोरी कांड की फांसियों के बाद भारतीय क्रांतिकारी दल के ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ में रूपांतरित होने के समय से शुरू होता है।

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यह पूरा आलेख नितांत तथ्यहीन संदर्भों से भरा हुआ है जिसका ऐतिहासिकता और सच्चाई से दूर का भी रिश्ता नहीं। ऐतिहासिक घटनाक्रम और उसकी सच्चाइयों को झुठलाने वाले इस नितांत अशोभनीय आलेख को NDTV जैसे ज़िम्मेदार चैनल के माध्यम से प्रसारित करने पर क्रांतिकारी इतिहास की भ्रमपूर्ण छवि प्रस्तुत होती है जिससे लोगों में गलत धारणाओं का समावेश होता है।
इसका जोरदार खंडन किया जाना चाहिए। ऐसे लेखन और प्रसारण के लिए अविलम्ब क्षमा याचना की जाए।

(इस लेख के लेखक सुधीर विद्यार्थी ने भारत के क्रान्तिकारियों पर बेहद गम्भीर व शोधपरक काम किया है। भगत सिंह जैसे तमाम क्रान्तिकारियों की उनके द्वारा लिखी गई जीवनियाँ अपने आप में दस्तावेज हैं।)

इस श्रृंखला की अगली कड़ी भी हम प्रकाशित करेंगे

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