मलयालम कवि रहीम पोन्नाड की भाषा निरोधनम कविता

#भाषा की बंदी
एक दिन आधी रात को उन्होंने भाषा पर पाबंदी लगा दी
घोषणा हुई आज से सब की एक ही भाषा होगी
पुरानी भाषा को डाकघर से बदल कर ले जा सकते हैं ।
नींद से उठ कर लोग इधर-उधर भागने लगे
हर जगह चुप्पी थी
माँओ ने बच्चों के मुंह को हाथ से दबाकर बन्द किया
बुजुर्गों के मुंह में कपड़ा ठूंसा गया
मंदिर का गाना रुक गया
और मस्जिद से अज़ान भी
रेडियो पर सिर्फ वीणा वादन हो रहा था
टीवी पर इशारों की भाषा में खबर चली
अखबार के नाम पर आठ पन्नों का कोरा कागज मिला
हर एक की-बोर्ड खामोश हो गया
मोबाइल स्क्रीन पर सिर्फ चिन्ह दीखे ।
डाकघर की लाइन में सब खामोश खड़े थे
एक दिन में एक व्यक्ति सिर्फ दो ही शब्द बदल सकता था
कोई कोई तो बोरियां भरकर शब्द लाये थे
शब्दों से भरा ‘टिफिन बॉक्स’ और ‘स्कूल बैग’लेकर आए बच्चे भी खड़े थे लाइन में
जिसने ‘अम्मा’ दिया उसको ‘मां’ मिला
जिसने ‘अब्बा’ दिया उसको ‘बाप’
‘चॉकलेट’ और ‘गेम’ बदलने के लिए आए बच्चों को काउंटर से ही वापस भेजा गया कि
सिर्फ भाषा ही बदल सकते है।
बदले में शब्द ना होने के कारण
‘बेजार’ और ‘कफन- को लौटाया गया
छुरी बदलने आए लोगों को भगा दिया गया
अफीम बदलने जो आए उनको पुलिस ने पकड़ लिया
लाइन में थके हुए बूढ़े ने ‘पानी’ मांगा तो
गोली से उसका मुंह बंद कर दिया गया ।
ये सब देखकर घर पहुंचा तो आंगन में शब्दों का ढेर लगा था,
बदल कर लाने के लिए घरवालों ने इकट्ठा किए थे शब्द
नए, पुराने, बिना लिपि के
तकिए से पापा ने जो शब्द निकाला
मेरी ही समझ में नहीं आया
मां के पल्लू में भरे शब्दों को
अभी तक सुना ही नहीं था
बीवी ने रसोई में खींच लिया
तभी पता चला कि वह अब तक
इतने ही शब्दों के बीच पक रही थी
बेटी की बगिया में ‘होमवर्क’ का शब्द
बेटे के बक्से में अपनी जगह से हटे मजाकिया शब्द
कैसे बताऊं इनको कि दो ही शब्द मिलेंगे इनको बदले में ।
शब्दों के ढेर में मैंने काफी खोजा
काफी मशक्कत के बाद आखिर में
एक-एक भारी भरकम शब्द दोनों हाथ लगा
सारी ताकत लगाकर मैंने शब्दों को बाहर निकाला
‘जनवाद’ और ‘विविधता’
भागते हुए डाकखाने पहुंचा तो अंधेरा घिरने लगा था
मेरे हाथों में शब्दों को देखकर काउंटर पर बैठे लोग चौंक कर खड़े हो गए
मेरे हाथ से शब्द फिसलकर गिरे
कई लोगों के भागते हुए इकट्ठा होने और
बूटों की आवाज सुनाई दे रही थी
बेहोश होते होते बदले में मिले दो शब्द मैंने सुना
‘मार डालो’ ‘देशद्रोही’ ।
#मलयालमकविता – #भाषानिरोधनम
#कवि – #रहीम_पोन्नाड (केरल)
#हिन्दी_अनुवाद : ए आर सिन्धु, वीना गुप्ता
साभार Vibhavari Jnu
Note : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के हिंदी दिवस के मौके पर देश में एक भाषा की वकालत किए जाने के विरोध में मलयालम कवि रहीम पोन्नाड ने “भाषा निरोधनम” नाम से कविता लिखी है। रहीम, गवर्मेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, तवानुर, मल्लापुरम, केरल में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। “भाषा पर पाबंदी” नाम से उनकी कविता का हिंदी अनुवाद मज़दूर संगठन सीटू (CITU) की सचिव ए आर सिन्धू और डॉ. वीणा गुप्ता ने मिलकर किया है।
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