जम्मू कश्मीरः दो नाबालिगों को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया, जांच के आदेश

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने हिरासत में रखे गए नाबालिगों के संबंध में सरकार से जवाब मांगा है

नई दिल्लीः जम्मू कश्मीर में दो नाबालिगों पर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) लगाने का मामला सामने आया है. दोनों नाबालिगों के रिश्तेदारों ने इस मामले में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का रुख किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रिश्तेदारों का कहना है कि इन नाबालिगों में से एक की उम्र 16 जबकि दूसरे की 14 साल है.

हाईकोर्ट ने एक मामले में जांच के आदेश दिए हैं जबकि दूसरे मामले में सरकार से जवाब मांगा है.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की श्रीनगर विंग ने हिरासत में रखे गए एक नाबालिग के रिश्तेदार की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए जांच के आदेश दिए हैं. इस याचिका में कहा गया है कि हिरासत में रखे गए बच्चे की उम्र 14 साल है और उसे सख्त पीएसए के तहत हिरासत में रखा गया है.

जस्टिस अली मोहम्मद मागरे की एकल पीठ ने रजिस्ट्रार से इस मामले में 10 दिन के भीतर जांच पूरी करने और हिरासत में लिए गए नाबालिग की उम्र का पता लगाने को कहा है.

दूसरे मामले में जस्टिस संजीव कुमार की एकल पीठ ने एक अन्य बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को पीएसए मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा है.

हिरासत में रखे गए नाबालिग के रिश्तेदार की तरफ से नाबालिग की उम्र के प्रमाण के रूप में स्कूल का रिपोर्ट कार्ड पेश कर कहा कि उसकी उम्र 16 साल है और वह नाबालिग है. अदालत ने इस मामले में सराकर से एक अक्टूबर से पहले जवाब दाखिल करने को कहा है.

यह आदेश ऐसे समय में आए हैं जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 20 जनवरी को जम्मू कश्मीर की चीफ जस्टिस गीता मित्तल को कथित रूप से हिरासत में रखे गए बच्चों के संबंध में सात दिन के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि हम जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी की रिट याचिका में बताए गए तथ्यों के संबंध में जांच करने व एक सप्ताह के भीतर हमें जवाब देने का निर्देश देते हैं.

मालूम हो कि पहले मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका 16 साल के नाबालिग के बहनोई ने दायर की, जिसने 10 अगस्त को श्रीनगर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित पीएसए के तहत की गई कार्रवाई को चुनौती दी. उसने मांग की कि नाबालिग को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम के तहत किशोर जुवेनाइल ऑब्जर्वेशन होम में रखा जाए.

जस्टिस मागरे के जांच के आदेश से पहले सरकार ने दावा किया था कि न तो हिरासत में लिए गए बच्चे के अभिभावक ने स्कूल में दाखिल के समय जन्म प्रमाण पत्र पेश किया था और न ही स्कूल ने नगर निगम या अस्पताल की तरफ से जारी इस दस्तावेज को लेकर गंभीरता दिखाई थी.

( द वायर से साभार एवं संपादित )

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