पर्यावरण के संकट को चुनौती देने दुनिया भर में बच्चे स्कूल छोड़ सड़कों पर उतरे

20 सितम्बर को दुनिया भर में ‘क्लाइमेट स्ट्राइक’ का आयोजन किया गया। 20 से 27 सितंबर तक “ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक सफ्ताह” मनाया जाएगा। दुनिया भर के क़रीब 150 देशों में नौजवानों और स्कूल के छात्र छात्राओं ने इस हड़ताल में भाग लिया । यह ‘ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक’ पिछले कुछ सालों में पर्यावण संकट को संबोधित करने के लिए अलग अलग आंदोलनों के द्वारा आयोजित किया जा रहा है। दुनिया भर में गहराते जा रहे पर्यावरण संकट और युवाओं के भविष्य पर आसन्न संकट को लेकर पिछले 2-3 सालों में स्वीडन, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में स्कूल में पढ़ रहे युवाओं और अन्य नौजवानों द्वारा संगठित विभिन्न आन्दोलनों ने इस क्लाइमेट स्ट्राइक के आयोजन में सक्रिय और व्यापक भूमिका निभाई। यह आन्दोलन पिछले दशक में विश्व भर में व्यापक हुए “ऑक्युपाई” आन्दोलन, मताधिकार व अन्य राजनैतिक हकों के लिए 20 वी शताब्दी की शुरुआत में महिलाओं द्वारा किए गए संघर्ष, और अन्य सामाजिक और नागरिक अधिकारों के लिए किये गए आंदोलनों से प्रेरित है। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य, आज गहराते जा रहे पर्यावरण संकट के पीछे सरकारों और पूंजीवादी ताकतों की भूमिका का पर्दाफाश करना है। उनका कहना है कि अगर पूंजीवाद व्यवस्था ने पर्यावरण की बर्बादी के खिलाफ तत्कालीन ठोस कदम नहीं उठाये तो आने वाले दिनों में पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

आमतौर पर, जलवायु परिवर्तन पर बातचीत, अक्सर अंटार्टिका में बर्फ के पिघलने या गर्म हो रहे वातावरण यानि ग्लोबल वार्मिंग जैसी प्रक्रियाओं तक सीमित हो जाती है। ऐसा लगता है कि यह हम सभी से दूर घटित होने वाली कोई अलग प्रक्रिया है जिसका हमारी ज़िन्दगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। या कभी यह वास्तविकता वैज्ञानिक रिपोर्टों या संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन वार्ता के जटिल शब्दजाल में उलझ कर रह जाती है। लेकिन, जलवायु परिवर्तन के रोज़मर्रा के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की हकीकत इस हद तक पहुंच गई है कि अब इसे गंभीर संकट या आपातकाल के रूप में स्वीकार करना होगा। चेन्नई में कई हफ्तों तक पानी की गंभीर किल्लत रही और वहां अन्य स्थानों से ट्रेनों के माध्यम से पानी पहुंचाया जा रहा था। एक ही समय में थोड़े अंतराल में बाढ़ ने असम, बिहार, केरल में तबाही मचाई, ओडिशा में एक विनाशकारी चक्रवात आया, जबकि महाराष्ट्र को एक गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा। हम देख सकते हैं कि दुनिया भर में, लगातार तीव्र सूखा और बढ़ती गर्मी की समस्या गहराती जा रही है, समुद्र का बढ़ता जल स्तर तटीय समुदायों को नष्ट कर रहा है, अनियमित वर्षा कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रही है। वास्तविकता यह है कि हमारी पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बाद, जुलाई 2019 सबसे गर्म महीना रहा है। समुद्र का बढ़ता जलस्तर, स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि, भूजल के स्तर में गिरावट इत्यादि समस्याएं विस्तापन और सामाजिक संघर्ष का प्रमुख कारण रही हैं। ये केवल प्राकृतिक आपदाएँ नहीं हैं, बल्कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के हित में, उनके मुनाफे के लिए काम कर रही व्यवस्था का अपरिहार्य परिणाम हैं। विडंबना यह है कि जलवायु परिवर्तन का दंश सभी को एक जैसा नहीं झेलना पड़ता है। पर्यावरण संकट और उसके दुष्प्रभावों का अभिजात वर्ग यानि अमीरों और मेहनतकश तबके अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है।  गरीब, आदिवासी, किसान व मज़दूर वर्ग पर जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है जबकि वे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण के नुकसान के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं। वही एयर कंडीशन कमरों में रहने वाले और कार इस्तेमाल करने वाले अभिजात वर्ग की कोई जिम्मेदारी तय नहीं होती।

दुनिया भर की सरकारें इस संकट के लिए केवल मौखिक आश्वासन देकर संतुष्ट हैं। सत्ता में बैठे लोगों से यह उम्मीद करना बेमानी होगी कि इस संकट के समाधान के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे, क्योंकि वे स्वयं इस पर्यावरणीय संकट को पैदा करने और बढ़ाने वाली व्यवस्था का हिस्सा हैं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट के लिए आर्थिक रूप से मजबूत और विकसित पूंजीवादी देश ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जब तक हम मौजूदा शक्ति संतुलन संरचना, गहराते जलवायु संकट, जैव विविधता को हो रही हानि, बढ़ते मरुस्थलीकरण, बढ़ते प्रदूषण, प्रजातियों के विलुप्त होने और अन्य पर्यावरणीय संकटों का दुबारा से अध्ययन कर, प्राथमिकताएं तय नहीं कर लेते, तब तक हम इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते।

दिल्ली में “क्लाइमेट स्ट्राइक” में भाग ले रहे छात्र

इस दिशा में,पिछले कुछ वर्षों में ‘एक्स्टिंक्शन रेबेलियन’ और ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ जैसे आंदोलनों ने काफी सराहना और अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त की है। इस आंदोलन ने हज़ारों छात्र छात्राओं को प्रेरित किया कि वो अपनी शुक्रवार की कक्षा को छोड़कर सड़कों पर आएं और बदलाव के लिए ज़ोर लगाएं। इसी आन्दोलन की कड़ी में 20 सितम्बर को वैश्विक स्तर पर क्लाइमेट स्ट्राइक करने का निर्णय लिया गया था, जिसका भारत के विभिन्न शहरों में भी अच्छा-खासा प्रभाव नज़र आया। उम्मीद है लोग- बाग गहराते पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन को लेकर सचेत होंगे और इन मुद्दों पर गंभीरता से सामाजिक-राजनीतिक चर्चा को सामूहिक तौर पर आगे बढ़ाते हुए बदलाव की ओर कदम उठाएंगे।

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