जबरदस्त शोषण के शिकार हैं लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूर

कर्नाटका स्टेट लोडिंग-अनलोडिंग वर्कर्स यूनियन का दूसरा सम्मेलन

बंगलुरु (कर्नाटका)। कर्नाटका में विभिन्न विभागों में कार्य करने वाले लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूरों के हालात लगातार कठिन बने हुए हैं। सरकारी गोदामों तक में जबरदस्त शोषण का शिकार हैं लोडिंग अनलोडिंग के मज़दूर।

इन हालात में पूरे राज्य के लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूर संगठित हुए और तमाम दलाल यूनियनों से अलग हटकर अपना जुझारू संगठन बनाया। इस प्रक्रिया में ‘कर्नाटका स्टेट लोडिंग-अनलोडिंग वर्कर्स यूनियन’ सन 2012 में पंजीकृत हुई।

यूनियन के दूसरे सम्मेलन में माँगें हुईं मुखर

यूनियन का दूसरा सम्मेलन 25 जुलाई 2019 को संपन्न हुआ जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों से 500 मज़दूर प्रतिनिधि शामिल हुए। सम्मेलन में एक नई कमेटी का गठन हुआ जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत मज़दूरों का प्रतिनिधित्व है। यूनियन के राज्य अध्यक्ष वर्ध राजेंद्रा तथा महासचिव सतीश अरविंद चुने गए।

सम्मेलन के दौरान एक माँग पत्र तैयार हुआ, जिसमें समस्त लोडिंग-अनलोडिंग श्रमिकों के लिए कल्याण मंडली बनाने, ठेका प्रथा ख़त्म करने, 25000 रुपए न्यूनतम वेतन देने और मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे मज़दूर विरोधी श्रम सुधारों को रद्द करने आदि माँगें बुलंद हुईं।

बुरी स्थितियों में हैं लोडिंग-अनलोडिंग के मज़दूर

बेहद कठिन व भारी मेहनत का काम करने वाले लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूरों की स्थिति पूरे प्रदेश में बेहद खराब है। पूरे राज्य में लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूरों के लिए ईएसआई और पीएफ की सुविधा नहीं है।

कर्नाटका फूड सिविल सप्लाई कारपोरेशन (केएफसीएसएससी) के 320 गोदामों में 5 -6 हजार मज़दूर काम करते हैं, लेकिन कहीं भी ईएसआई पीएफ की सुविधा नहीं है। तमाम जगहों पर न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता। स्टेट वेयर हाउस (एसडब्ल्यूसी) के 100 गोदाम है जिसमें करीब 200 मज़दूर काम करते हैं। जिन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलतीं।

रेलवे गुड शेड के प्रत्येक जिले में एक-एक शेड हैं, जिसमें करीब 3 हजार मज़दूर काम करते हैं। सीमेंट गोदाम जो कि निजी क्षेत्र में है और गोबर गोदाम में करीब 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। इनमें केवल मांड्या जिला में संघर्ष के बाद ईएसआई और पीएफ लागू हुई। लेकिन प्रदेश के अन्य जिलों में यह सुविधा लागू नहीं हुई।

एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) में 2 लाख लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूर काम करते हैं। केएफसीएसएससी गोदामों में 10 साल में संघर्षों के बाद मज़दूरी 6 रुपए से बढ़कर 16 रुपए हुई है।

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एपीएमसी में कोई भी सुविधा नहीं है। वहाँ न्यूनतम वेतन भी लागू नहीं है। जबकि वहाँ कार्यरत हमाल मज़दूर (स्थाई मज़दूर) जबरदस्त शोषण का शिकार हैं। हालात ये हैं कि किसानों से दलाल प्रति बोरी 2 रुपए लेता है, लेकिन हमाल मज़दूर को महज 50 पैसा देता है।

कर्नाटक स्टेट वेबराइजर कारपोरेशन लिमिटेड (केएसबीसीएल) में पूरे राज्य में 2000 मज़दूर कार्य करते हैं, जिन्हें किसी भी प्रकार की सुविधाएं प्राप्त नहीं है। मांड्या जिले में 2014 में मज़दूरों ने यहाँ अपनी यूनियन बनाई थी, लेकिन एक साजिश रच कर उसे तोड़ दिया गया। फिर मजदूरों ने सोसाइटी बनाकर अपने संघर्ष को आगे बढ़ाया। इस संघर्ष में मांड्या जिले में 2017 में ईएसआई व पीएफ लागू हुआ।

लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूरों के तीन प्रकार के काम काम

तीन तरह के लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूर काम करते हैं। गोदामों में साल भर काम मिलता है। बाज़ार में अलग अलग व्यापारी के पास, सब्जी बाज़ार में, बस स्टैंड पर व रेलवे स्टेशन पर काम मिलता है।

एफसीआई में कुछ परमानेंट मज़दूर हैं पर उनको कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। लॉरी ना भी आए तब भी उन्हें वेतन मिलता है। सिर्फ एक प्रतिशत लोग स्थाई हैं। एफसीआई के गोदामों में काम करने वालों की नियोक्ता सरकार है। बाजार आदि में एक जगह काम करने के बावजूद सभी एक मालिक के पास काम नहीं करते हैं। अगर 100 मजदूर हैं तो 30 मालिक हैं।

संगठित होने की समस्याएं

लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूरों को संगठित करने की सबसे बड़ी दिक्कत उनका बिखरा होना और रोजगार की अनियमितता है। कई क्षेत्रों के मज़दूर यह स्वीकार नहीं कर पाते कि उन्हें श्रम कानूनों का कोई लाभ मिलेगा, क्योंकि यह आठ घंटे का काम नहीं है। इसलिए संगठित होने में समस्या बनती है। दूसरे दारू की लत भी संगठित होने में बाधा पैदा करती है। ठेकेदारों को मिलने वाले सरकार व प्रशासन के संरक्षण और मालिकों का बर्चास्व भी बड़ी बाधा बनते हैं। इन सबके बावजूद मज़दूर जब अपने संगठन की ताक़त को समझने लगते हैं, तो संगठित भी होते हैं और हुए हैं।

यूनियन बनने से मजदूरों में मजबूती आई

सन 2012 में पूरे प्रदेश के लोडिंग-अनलोडिंग मजदूरों को एक बैनर के तहत साथ लाने का एक प्रयास का लंबे समय से चल रहा था। इस प्रयास ने सन 2012 में एक संगठन का रूप लिया। इस प्रकार कर्नाटका स्टेट लोडिंग-अनलोडिंग वर्कर्स यूनियन का गठन हुआ और वह पंजीकृत हुआ।

तब से मज़दूरों के संघर्ष को एक नई गति मिली और अलग-अलग क्षेत्रों में जहाँ भी मज़दूर संगठित हुआ और आंदोलन मजबूत रहा, वहाँ मजदूरों को इसका लाभ भी मिला।

अन्न भाग्य योजना का संघर्ष

कर्नाटका में सिद्धरमैया सरकार के वक्त अन्न भाग्य योजना के अंतर्गत पीडीएस में मुफ्त 7 किलो चावल प्रति व्यक्ति मिलता था। प्रत्येक व्यक्ति का 30 किलो चावल का कोटा था। सिद्धरमैया सरकार ने बहुत प्रचार किया। इस मुद्दे पर एक संघर्ष शुरू हुआ। अन्नभाग योजना को अलग नाम से शुरू कराने के लिए संघर्ष सफल रहा। अन्नभाग योजना को एक साल तक लागू करने के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया गया। योजना को डीसी से मिलकर लागू करवाया गया। हर जिले में लीगल सहायता केंद्र बना।

अब दमन करना उतना आसान नहीं

यूनियन बनने के बाद ठेकेदारों के लिए दमन करना आसान नहीं है। परंतु सुविधाएं अभी भी नहीं मिल पाई है। संघर्षों से कई सुविधाएँ मिली भी हैं।

अभी मज़दूर अपने संगठन की ताकत को समझने लगे हैं, ऐसे में उनका संघर्ष मजबूती की ओर आगे बढ़ रहा है।

(यूनियन के राज्य अध्यक्ष वर्ध राजेंद्रा से बात-चीत पर आधारित)

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