बेंगलुरु में गारमेंट मज़दूरों ने वेतन बढ़ाने को लेकर प्रदर्शन किया

बेंगलुरु: गारमेंट मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन लागू करने में हो रही देरी को लेकर गारमेंट एंड टैक्सटाइल वर्कर्स यूनियन(GATWU) ने हाल ही में 12 सितम्बर को बेंगलुरु में डेहरी सर्किल पर लेबर डिपार्टमेंट के सामने प्रदर्शन किया।
फरवरी 2018 में राज्य सरकार ने वेतन को ₹7000-₹8000 से बढ़ाकर ₹11557 प्रति माह करने का आदेश निकाला था। लेकिन कुछ दिनों बाद सरकार ने यह आदेश वापस ले लिया, जिसको लेकर हाईकोर्ट में अपील की गई थी। मार्च 2019 में हाईकोर्ट ने सरकार को 6 महीनों के अंदर न्यूनतम मजदूरी तय करने का आदेश दिया था।मजदूरों का कहना है कि अभी तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है।
गारमेंट मजदूरों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं का कहना है कि उन्हें घर का खर्च चलाने में काफी दिक्कतें आ रही है। जी ए टी डब्लू यू की अध्यक्ष प्रतिभा का कहना है कि अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए महिला मजदूर भी अपने वेतन पर निर्भर है पर यह विडंबना है कि उन्हें दो वक्त का खाना नसीब नहीं हो रहा है। प्रत्येक 3 से 5 साल में वेतन बढ़ोतरी होती है मगर पिछले 6 सालों से वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। यह दर्शाता है कि किस हद तक सरकार महिला मजदूरों के प्रति उदासीन है।
इस मुद्दे को लेकर 5 सितंबर को फैक्ट्री प्रबंधन यूनियन प्रतिनिधियों और सरकार के मध्य त्रिपक्षीय वार्ता हुई जिसमें फैक्ट्री मालिक सिर्फ़ 9 प्रतिशत वेतन वृद्धि के लिए राजी हुए जो पूरे वेतन में सिर्फ ₹350 की वृद्धि है जबकि मांग ₹478 की थी। और सरकार ने भी फैक्ट्री मालिकों का साथ देते हुए 9% वेतन बढ़ाने पर सहमति दी।
श्रम विभाग के अधिकारियों का कहना है की इस मामले की रिपोर्ट न्यूनतम वेतन निर्धारित करने वाली कमेटी के पास है। रिपोर्ट राज्य सरकार के पास भेजी जाएगी फैसला उनको ही लेना है। मज़दूरी ₹11,557 करने पर फैक्ट्री मालिक काम बंद करने या दूसरे राज्यों में पलायन करने की धमकी देते हैं। 29 सितंबर तक राज्य सरकार कोई ना कोई फैसला जरूर ले लेगी।