यूपी पुलिस ने सुनील पासी के पैर में बोरी बांधकर मारी थी गोली

फैक्ट फाइंडिंग का दावा, पुलिस ने मुख्तार अंसारी का शूटर बताकर मारा दलित को

लखनऊ। आजमगढ़ पुलिस ने दावा किया कि 28 अगस्त 2019 की सुबह फूलपुर थाना क्षेत्र के खंजहां पुलिया के पास हुई मुठभेड़ में सुनील पासी और परशुराम यादव को पैरों में गोली लगने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था, जबकि उनके साथ मौजूद तीसरा बदमाश पंकज निषाद भागने में सफल रहा। हिरासत में 2 सितंबर को सुनील पासी की मौत हो गई।


रिहाई मंच प्रतिनिधिमंडल ने कथित मुठभेड़ की सच्चाई जानने के लिए सुनील पासी के परिजनों से उसके गांव बसगीत जोकि जहानागंज थाने में पड़ता है जाकर मुलाकात की। मृतक सुनील पासी के परिजनों से मुलाकात करने वाली इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में मसीहुद्दीन संजरी, विनोद यादव, तारकि शफीक, शाहआलम शेरवानी, बांकेलाल यादव और टाइगर यादव शामिल थे।


टीम का कहना है कि सुनील पासी के पिता का देहांत हो चुका है। तीन बेटियों और दो बेटों का पिता सुनील पासी दो भाइयों में दूसरे नम्बर का था। सुनील का सबसे छोटा बेटा उसको गोली लगने के दो दिन बाद पैदा हुआ।


सुनील के बड़े भाई सुभाष पासी ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि 28 अगस्त की सुबह सूचना मिली कि पुलिस एनकाउंटर में सुनील को पैरों में गोली लगी है, तो वह परिवार और गांव के लोगों के साथ जिला सदर अस्पताल गए। वहां उन्हें बताया गया कि सुनील को वाराणसी ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया गया है। वहां से वह लोग वाराणसी पहुंचे, जहां पता चला कि गोली निकालकर उसे आजमगढ़ वापस भेज दिया गया है। आजमगढ़ में मालूम हुआ कि उसका चालान हो गया और उसे जेल भेज दिया गया। बहुत कोशिश करने के बाद केवल उसकी पत्नी सीमा को उससे मुलाकात की अनुमति मिली। मगर उसे भी दूर से दिखाकर वापस कर दिया गया, उससे मिलने और बातचीत नहीं करने दी गयी।


सुभाष के मुताबिक, सुनील पासी सूअरों का कारोबार करता था। उसने गांव के पास और बिलरियागंज के पास चुन्हैवां में दुकानें भी खोल रखी थीं। घटना वाले दिन परशुराम यादव और पंकज निषाद सुअरों की खरीद के लिए आल्टो कार से जौनपुर के बड़गूजर नामक स्थान पर गए थे। बड़गूजर सुअरों के कारोबार का बड़ा केंद्र है। तीनों वापस लौट रहे थे कि रात में करीब दो बजे जौनपुर की नहर के पास वाली रेलवे क्रॉसिंग पर पुलिस वालों ने उन्हें रोककर अपनी गाड़ी में बैठा लिया। रास्ते में उन्होंने पंकज निषाद को गाड़ी से उतार लिया और फूलपुर-मैगना बाजार के बीच स्थित खंजहां पुलिया के पास सुनील पासी और परशुराम के पैरों में बोरी बांधकर गोली मार दी।


सुनील गांव के ही बालचंद्र सरोज कहते हैं, पुलिस 13 जून को फूलपुर के कपड़ा व्यवसायी प्रदीप जायसवाल की हत्या का आरोप सुनील पासी पर लगा रही है, जो सरासर झूठ है। 13 अगस्त को गांव में शादी थी और पूरे समय सुनील उस शादी में मौजूद रहा। एक व्यक्ति एक साथ दो स्थानों पर कैसे रह सकता है। सुभाष ने भी बताया कि तीसरे बदमाश के भाग जाने की थ्योरी भी पूरी तरह गलत है। तीनों को एक साथ उठाया गया था, पंकज निषाद को अलग किया गया और फिर सुनील के एक पैर में दो तथा दूसरे पैर में एक गोली मारी गई, जबकि परशुराम के एक पैर में गोली मारी गई और पंकज को जेल भेज दिया गया। इस सच्चाई को छुपाया गया।


वहीं सुनील की पत्नी सीमा कहती है, मेरे पति को श्याम बाबू पासी और मुख्तार अंसारी का शूटर बताकर हत्या को जायज ठहराने का प्रयास किया जा रहा है। सुनील पर 2015 में साजिश के तहत राजपूत जाति के वकील और शिक्षा मफिया ने फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए थे। गांव के बाहर मुख्य सड़क पर वह वाहन धुलाई का सर्विसिंग सेंटर चलाता था और वकील साहब उस जगह को हथियाना चाहते थे। इसे हटाने को लेकर विवाद भी हुआ था। इसी क्रम में उस पर छिनैती और आर्म्स एक्ट में फर्जी मुकदमा लगवाया गया था। तब उसे जेल भी जाना पड़ा था। जेल से छूटने के बाद उसने सूअरों को कारोबार शुरू कर दिया था।


गौरतलब है कि सुनील ने पिछली बार ग्राम प्रधानी का चुनाव भी लड़ा था और कुछ ही वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर रहा। ग्रामीणों और परिजनों की मानें तो पुलिस ने साजिशन कपड़ा व्यवसायी की हत्या से उसका नाम जोड़ा, इनाम घोषित किया और कोई एक सप्ताह बाद गोली मार दी। सुनील की पत्नी सीमा के मुताबिक, सुनील के बारे में सूचना ग्राम प्रधान को पुलिस ने दो सितंबर की रात में करीब दो बजे ही दे दी थी, लेकिन परिवार को नहीं बताया। सुबह सात बजे पुलिस ने सूचना दी कि सुनील की हालत गंभीर है और उसे सदर अस्पताल भेज दिया गया है। जब हम लोग अस्पताल पहुंचे तो सुनील मर चुका था और उसके मुंह से निकला झाग दिखाई दे रहा था। सुनील और अन्य परिजन शक जताते हैं कि सुनील को जेल में जहर देकर मारा गया है। सुनील के भाई कहते हैं कि सुनील का मोबाइल नम्बर 9648056561 था। अगर उसके मोबाइल की जांच की जाए तो तथ्य और सच सामने आ सकता है।

वहीं गांव के एक बुजुर्ग आक्रोशित होकर कहते हैं, जहां एक तरफ अखंड प्रताप सिंह जैसों पर हत्या समेत कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। वह वांटेड हैं, लेकिन आजाद घूम रहे हैं और किसी पुलिस वाले की हिम्मत नहीं कि उन पर हाथ डाल दे। गरीब और वंचित जातियों के लोगों के खून की कोई कीमत नहीं है। पुलिस का हर अभियान इन्हीं के खिलाफ होता है। उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ की ‘ठोक दो’ नीति को निचले स्तर पर लोग इसी तरह देखते हैं।

जनज्वार से साभार एवं संपादित

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