अशोक लेलैंड में 5 से 18 दिन फिर कामबंदी

पिछले जुलाई व अगस्त में भी हुआ था ले-ऑफ

★ कंपनियों में उत्पादन बंदी की सबसे अधिक मार उसकी वेंडर कंपनियों व ठेका मज़दूरों पर पड़ता है।
★ कथित मंदी के बहाने मोदी सरकार इन कंपनियों को तो लाभ का पैकेज दे देगी, लेकिन असल तबाही तो मज़दूरों के हिस्से आएगी!

यह लगातार तीसरा महीना है जब हिंदुजा समूह की प्रमुख कंपनी अशोक लेलैंड ने कमजोर माँग के बीच अपने वाहनों के उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया है। इसके लिए उसने अपने कई कारखानों में सितंबर माह में पुनः उत्पादन बंद करने की घोषणा की है। उसने अपने पांच कारखानों में इस महीने भी 5 से 18 दिन तक के लिए ‘नो वर्किंग डेज’ रखने की घोषणा की है।


5 प्लांटों में नो वर्किंग डे


कंपनी द्वारा बंबई शेयर बाज़ार को भेजी सूचना में में दी गई जानकारी के अनुसार वह अपने एन्नोर प्लांट में 16 दिन कामकाज बंद रखेगी। वहीं होसुर (तमिलनाडु) में पांच दिन, अलवर (राजस्थान) में 10 दिन, भंडारा (महाराष्ट्र) में 10 दिन और पंतनगर (उत्तराखंड) इकाई में 18 दिन कामकाज बंद रखने का फ़ैसला किया है।

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कंपनी ने कहा कि उसने अगस्त में कुल 9,231 वाहनों की बिक्री की, जबकि साल 2018 के अगस्त में किए गए 17,386 वाहनों की बिक्री से काफी कम है।

सबसे बड़ी मार ठेका मज़दूरों व वेंडर कंपनियों पर


ज्ञात हो कि अशोक लेलैंड ने पिछले जुलाई और अगस्त माह में भी उत्पादन ठप रखा था। इस उत्पादन बंदी की सबसे अधिक मार उसकी वेंडर कंपनियों व ठेका मज़दूरों पर पड़ती है।


उल्लेखनीय है कि अशोक लेलैंड चेन्नई प्लांट में वीआरएस भी प्रस्तावित कर चुका है। कंपनी के भीतर कार्यरत सहायक कंपनियों को 30 फीसदी तक कास्ट कटिंग के बहाने मैन पॉवर घटाने का फरमान जारी किया था।

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मंदी के बहाने नए दबाव का खेल


दरअसल, मंदी की मार से जूझ रहे ऑटो सेक्टर में गाड़ियों की बिक्री में लगातार गिरावट आ रही है। इस गिरावट के चलते गाड़ी बनाने वाली कंपनियां अपने उत्पादन को कम कर रही हैं। ऑटोमोबाइल क्षेत्र की टाटा से लेकर मारुति तक मे लगातार हर माह ले ऑफ हो रही है। इस कड़ी में अशोक लेलैंड ने अपनी पाँच फैक्ट्रियों में ‘नो-वर्किंग डे’ (कामबंदी) की घोषणा की है।
कंपनियाँ इस बहाने जहाँ सरकार से और रियायत का दबाव बना रही हैं, वहीं बड़े पैमाने पर पुराने अस्थाई श्रमिकों की छँटनी करने और स्थाई मज़दूरों पर बेजा दबाव बनाने में भी कामयाब हो रही हैं।

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मोदी सरकार इन कंपनियों को तो लाभ का पैकेज दे देगी, लेकिन असल तबाही तो मज़दूरों के हिस्से आएगी!


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