पूँजीवादी सभ्यता और अपराध

दार्शनिक विचारो को जन्म देता है। कवि कविताओ को, पादरी उपदेशों को प्रोफसर संक्षिप्त सग्रहो को- आदि आदि। अपराधी अपराध को जन्म देता है! उत्पादन की सबसे बाद वाली इस शाखा तथा पूरे समाज के बीच जो सम्बन्ध है उसे यदि हम किंचित अध्कि समीप से देखंे तो हमें बहुत से पूर्वग्रहों से मुक्ति मिल जाएगी फ्अपराधी केवल अपराधों को ही नहीं बल्कि आपराधिक/फौज़दारी कानून को जन्म देता है और उसके साथ साथ उस प्रोफेसर को भी जो फौज़दारी कानून पर लेक्चर देता है। इन सबके अलवा उन अनिवार्य संक्षिप्त संग्रहों को भी जन्म देता है जिनके वही अपने लेक्चेर को शामिल करके मालो के रूप में बिक्री के लिए आम बाजार में ले जाता है।

…अपराध श्रम की मंडी से अतिरिक्त जनसंख्या के एक अंश को अपने साथ घसीट ले जाता है और इस भांति श्रमिको के बीच कार्य के लिए चलने वाली प्रति प्रतिद्वन्द्विता को कम कर देता है जिससे कि किसी हद तक मज़दूरी न्यूनतम से नीचे गिरने से रुक जाती है। इसी जनसंख्या का एक दूसरा अंश अपराध का मुक़ाबाल करने के कामों में लग जाता है।

…अगर चोर न होते तो यह संभव था कि इतने अच्छे ताले बन सकते जितने की आज मिलते हैं? अगर जालिए न होते तो क्या यह संभव था कि बैंकों के नोट उस उत्कृष्टता को प्राप्त कर लेते जो आज उनमें दिखलायी देती है? व्यापारिक कार्यों में यदि धेखा-धड़ी न की जाती होती तो क्या यह सम्भव था कि साधरण वाणिज्य के क्षेत्र में अनुवीक्षक यन्त्र को प्रवेश मिल जाता! व्यवाहरिक रसायनशास्त्र उत्पादन के लिये सच्चे उत्साह का जितना ऋणी है उतना ही ऋणी क्या वह मालों की मिलावट तथा उसका पता लगाने के प्रयासों का नहीं है?

सम्पति के ऊपर हमले करने के नित्य नये-नये तरीके को ईजाद करके अपराध बचाव के भी नये-नये तरीकों को भी निरंतर जन्म देता रहता है और इसलिये वह भी उतना ही उत्पादक है जितनी की मशीनों के अविष्कार के लिये हड़ताले होती है और यदि निजी अपराधो की दुनिया को छोड़ दिया जाये तो क्या यदि राष्ट्रीय अपराध न होते तो विश्व बाजार की कभी उत्पति हो सकती थी? दरसल तो क्या राष्ट्रों का भी उदय हो सकता था और क्या आदम के ही समय से पाप का वृक्ष साथ-साथ ज्ञान का भी वृक्ष नहीं रहा है!…

-कार्ल मार्क्स

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