हरियाणा विधानसभा चुनाव : मज़दूर अपना प्रत्याशी खड़ा कर देंगे चुनौती

कैथल में मजदूरों ने किया समतावादी जनमुक्ति मंच का गठन, हरियाणा विधानसभा चुनाव में करेंगे हिस्सेदारी

★ कैथल के कलायत से नवगठित ‘समतावादी जनमुक्ति मंच से मारुति के बर्खास्त मज़दूर नेता रामनिवास प्योदा होंगे प्रत्याशी

★ 15 सितम्बर को मंच हरियाणा सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध अपनी सभा कैथल में

कैथल। हरियाणा में आने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार मज़दूर, किसान, मेहनतकश जनता के मुद्दों को उजागर करने के लिए और जनता के वास्तविक मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, समानता, भाईचारा की आवाज़ उठाने के लिए ‘समतावादी जनमुक्ति मंच’ हरियाणा का गठन किया गया।

मंच के संयोजकों में रामनिवास प्योदा, जसवंत सिंह गिल, खुशी राम, जितेंद्र धनखड़, यशवीर मलिक, अमरजीत, राजीव सैनी, शबीर व राकेश शामिल हैं। मंच हरियाणा में होने जा रहे आगानी विधानसभा में चुनाव लड़ रही सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को जनता के वास्तविक मुद्दों पर चुनौती देगा।

गौरतलब है कि हाल ही में जींद में हुई रैली में भाजपा सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने कुरुक्षेत्र के महान युद्ध की भूमि कह कर हरियाणा का आह्वान किया, लेकिन आधुनिक हरियाणा भी न्याय और आम जनता के हक़ों के लिए हुई कई जुझारू संघर्षों की ज़मीन रहा है। चाहे वह किसानों के संघर्ष हों या नए औद्योगिक क्षेत्रों के मज़दूर आंदोलन का, हरियाणा रोड़वेज के कर्मचारियों का,आंगनबाड़ी, मिड डे मिल, आशाकर्मी, मनरेगा मजदूर,आईटीआई छात्र या अन्य छात्र आंदोलन या सभी जन आंदोलन।

ज़दूरों, किसानों व बेरोज़गारी झेलते युवाओं द्वारा बनाया गया यह मंच हरियाणा में पिछले सालों में हुए ऐसे ही विभिन्न संघर्षों और आंदोलनों की उपज है। इस मंच को ख़ास तौर से पूरे प्रदेश में संघर्षरत रहे मारुति के कर्मचारियों और उनके परिवारों का भी समर्थन है।

र 5 साल में होने वाले चुनावी उत्सव का जनता के रोज़मर्रा के मुद्दों से रिश्ता लगातार कमजोर होता जा रहा है। एक तरफ पार्टियों द्वारा चुनाव में लगाई जा रही राशि बढ़ती जा रही है और दूसरी तरफ जनता की थाली से अनाज, उनके बदन से कपड़े, उनके बच्चों के बस्ते से किताबें ग़ायब होती जा रहीं हैं। वहीं नेताओं और खासतौर से सत्ताधारी पार्टी के बयानों को सुनें तो मालूम पड़ेगा कि देश और राज्य में बृहत विकास हो रहा है और रोटी, कपड़ा, मकान और रोज़गार के मुकाबले, भारत व पाकिस्तान में बनी युद्ध की संभावना और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाना ही जनता के मुख्य मुद्दे हैं।

रियाणा समाज, जिसने अपने कई नौजवान सेना में खोए हैं, वह जंग की कीमत भली-भांति जानता है। देश के नाम पर बयानबाज़ी कर रहे नेताओं के बच्चे सरहद पर गोलियां नहीं खाते। वह नौजवान हमारे किसान-मज़दूर परिवारों से ही आते हैं, मगर आज देश भक्ति के नाम पर हो रही राजनीति में जहां यह राजनेता जवानों की कुर्बानियों के गान गाते नहीं थकते हैं, वहीं उनके परिवारों को बेरोज़गारी और लाचारी में भूखा मारने में इन्हें कोई हिचक नहीं होती है।

ड़े पूंजीपतियों के साथ राजनीतिक पार्टियों द्वारा बनाई गई सांठगांठ ने पहले ही देश की कृषि व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था। आज किसान अपने खुद के उगाए हुए अनाज का बीज बनाकर नहीं बो सकता। खेती में लागत तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन मंडी के भाव पर किसानों का कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार द्वारा घोषित की गई किसान बीमा का लाभ किसानों को नहीं मिल कर निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है।

हाईवे बनाने के नाम पर औने-पौने दामों में किसानों की जमीनें छीनी जा रहीं हैं। भाजपा के किए गए वादों के बावजूद न ही अब तक स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू की गई है ना हीं किसानों के कर्ज माफ हुए हैं। वहीं मेहनतकश जनता अपने बच्चों को बड़ी कठिनाई से पढ़ा—लिखाकर, आईटीआई करा कर सोचती है कि हरियाणा में स्थापित हो रहे बड़े उद्योगों में नौकरी पाकर उनका भविष्य कुछ उज्ज्वल होगा।

रकारों ने औद्योगिक विकास के नाम पर न केवल राज्य के किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया है, बल्कि इन बड़ी देसी-विदेशी कंपनियों के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए यहां की जनता के हकों और रोज़गार को खुद कुचल कर रख दिया है। जब जब मज़दूरों ने अपने मूलभूत अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है, तो चुनी गई सरकारों ने ही, हमारे बीच में से उठे हुए पुलिस के सिपाहियों ने ही हमारे मज़दूर भाइयों पर लाठियाँ बरसाईं।

राज्य का तथाकथित विकास करने वाली बड़ी बड़ी कंपनियां मज़दूरों का खुल कर शोषण कर रही हैं। सालों से इन कंपनियों ने हरियाणा के युवाओं को नौकरी न देने का नीतिगत फैसला लिया है। सरकार द्वारा दी गई सभी छूटों के बावजूद पिछले 5 सालों में हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्रों में नया रोज़गार बनने के बजाय लगातार कंपनियां बंद हुई हैं और स्थाई मज़दूरों तक की छंटनी हुई है। जो रोज़गार बने हैं वह ठेका व अपरेंटिस के नाम पर मात्र मज़दूरों को कंपनियों के सुविधानुसार रखने या फेंकने का इंतज़ाम करते नज़र आते हैं।

सुरक्षित रोज़गार के इस दौर में आज कोई नवयुवक मज़दूर ठेके पर मिली नौकरी के भरोसे एक नया परिवार शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। सार्वजनिक क्षेत्र में भी लगातार कटौती होती दिखाई दी है, जिसका ख़ामियाज़ा जनता और इन कामों में लगे मज़दूरों को ही भरना पड़ा है। चाहे वह कांग्रेस की हुड्डा सरकार रही हो या भाजपा की खट्टर सरकार, शोषण दमन के इस चक्रव्यूह की रचना में सभी निर्वाचित सरकारों ने, हरियाणा की आम मेहनतकश जनता के खिलाफ, बड़े पूंजीपतियों का साथ निभाया है।

दियों से हरियाणा में भाईचारे के साथ रह रहे हिंदू और मुसलमान समुदायों के बीच आज हिंसा की खबरें सुनने को मिल रहीं हैं। वहीं जहां सरकार एक ओर ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के बोर्ड लगाने से नहीं थक रही व बढ़ते लिंगानुपात का श्रेय बटोर रही है, वहीं राजनेता राम रहीम जैसे अपराधी की राजनीतिक हिफाज़त करके व कश्मीर की महिलाओं के बारे में अपने दुष्विचार प्रकट करके, पूरे हरियाणा समाज का सर झुका रहे हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में जहां खट्टर सरकार एक ओर सरकारी स्कूलों को ‘मॉडल स्कूल’ बनाने के ख्वाब दिखा रही है, वहीं तथ्य बताते हैं कि हरियाणा के सरकारी स्कूलों में दाखिले का दर लगातार गिरता जा रहा है और इसी दौर में निजी स्कूलों में दाख़िला लगातार बढ़ रहा है। हालात ऐसे हैं कि पिछले सालों में हरियाणा के सरकारी स्कूलों के बच्चे तक अपने स्कूल में शिक्षक पाने के लिए आंदोलन करने को मजबूर हो गए थे। इस सब के बावजूद सत्ताधारी पार्टी इस बार 70 सीटों पर जीत का दावा कर रही है।

साल दर साल चुनावी राजनीति में धोखा खाने के बावजूद चुनाव जनता के राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि हम व्यक्तिगत स्तर पर अपना जीवन सुधारने के लिए कुछ भी कर ले, इस सरकार द्वारा लिए गए फैसले हमारे पूरे जीवन और भविष्य को निर्धारित करते हैं।

मंच ने किया आह्वान कि किसी भी संसदीय पार्टी की हार या जीत में आम मेहनतकश जनता की ही हार लिखी है, तब यह हर आम मेहनतकश, किसान, मज़दूर, युवा और बेरोज़गार की ज़िम्मेदारी है कि वह इस चुनावी बंदरबांट में संघर्ष की आवाज़ को बुलंद करें…

रकार के हाथों में संचित हमारे सारे संसाधनों व इनकी लाठी को मिली शक्ति का असली स्रोत आम जनता के वोट ही हैं, लेकिन आज सभी चुनावी पार्टियों ने जनता द्वारा उन्हें दी गई इस शक्ति को देसी-विदेशी बाजार में नीलाम कर दिया है। ऐसे में जहां इन्हें जनता की ताकत याद दिलाने का प्रमुख माध्यम जनता के आंदोलन हैं, वहीं इन आंदोलनों का चुनावी दायरे में इन्हें चोट पहुंचाना भी इस कार्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आज एक पार्टी के चिन्ह पर चुने गए विधायक मिनटों में दूसरी पार्टी के हो जाते हैं।

कांग्रेस की इतनी भर्त्सना करने के बाद भारी बहुमत से सत्ता में आई भाजपा ने कांग्रेस की ही आर्थिक नीतियों को और भी तेजी से लागू किया है। जनता की वास्तविक स्थिति को बद से बदतर किया है। ऐसे में जब यह स्थापित हो चुका है कि किसी भी संसदीय पार्टी की हार या जीत में दरअसल आम मेहनतकश जनता की ही हार लिखी है तब यह हर आम मेहनतकश, किसान, मज़दूर, युवा, और बेरोज़गार की ज़िम्मेदारी है कि वह इस चुनावी बंदर बांट में संघर्ष की आवाज़ को बुलंद करें।

मतावादी जनमुक्ति मंच का कहना है कि इसी उद्देश्य से हमारे द्वारा चुनावों में भागीदारी करने की पहल ली जा रही है। कलायत निर्वाचन क्षेत्र के सभी वासियों से मंच ने अपील की है कि अपना वोट ज़ाया ना होने दें। सत्ता के इस बाज़ार में अपने वोटों को निर्जीव अचेतन वस्तुओं की तरह शोषणकारी पार्टियों द्वारा नीलाम ना होने दें। मेहनतकश, मज़दूर, किसान, युवा के संघर्षों की आवाज़ों से अपनी आवाज़ जोड़े और जनता को धोखा देने वाली सभी पार्टियों को उनका मुंहतोड़ जवाब देने में हमारा समर्थन करें!

मंच ने निर्णय लिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कलायत विधानसभा से मारुति के बर्खास्त मजदूर नेता रामनिवास प्योदा समतावादी जनमुक्ति मंच के उम्मीदवार होंगे। आगामी 15 सितम्बर को मंच हरियाणा सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध अपनी सभा कैथल में करेगा।

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