20 अगस्त से 82,000 ऑर्डनेंस कर्मी एक महीने की हड़ताल पर

आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों में कोर और नान कोर के नाम पर बहुत सारे काम प्राईवेट कंपनियों को देने के बाद मोदी सरकार अब देश भर की 41 सार्वजनिक आर्डनेंस कंपनियों को निगम बनाने जा रही है।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि रक्षा उत्पादन के क्षेत्र 218 वर्ष पुराने आयुध निर्माणी संगठन (ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री आर्गनाइजेशन) का राष्ट्रीय सुरक्षा को नजरअंदाज करते हुए, पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से मोदी सरकार निगमीकरण करने जा रही है।

एआईडीईएफ़ के महामंत्री सी श्रीकुमार ने कहा है कि भारत सरकार के हठधर्मिता के कारण, महासंघों और रक्षा मंत्री/रक्षा सचिव के मध्य चल रही वार्ता के विफल होने के बाद हड़ताल पर जाना मजबूरी हो गया है।

बयान के अनुसार, आयुध निर्माणी संगठन के लगभग 82000 कर्मचारी, श्रम संगठनों (एआईडीईएफ़, आईएनडीडब्ल्यूएफ़ और बीपीएमएस) की अपील पर 20 अगस्त से एक महीने के हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है।

दोबारा जीत कर सत्ता में आने के चंद दिनों में ही मोदी सरकार ने रेलवे के कारखानों और आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों को निगम बनाने का फरमान जारी कर दिया।

अब इन कर्मचारियों डर सता रहा है कि उनका भी हश्र बीएसएनएल की तरह कहीं न हो जाए, जो आज बिकने की कगार पर पहुंच गई है और उसके कर्मचारियों को सैलरी तक नहीं मिल पा रही है।

ऐसे हो रही है बेचने की साजिश

अर्डनेंस फ़ैक्ट्री, मुरादनगर, यूपी में कार्यरत शशि भूषण ऑल इंडिया डिफ़ेंस एम्प्लाई फ़ेडरेशन के यूनियन प्रेसिडेंट हैं।

उन्होंने बताया कि ये फैक्ट्रियां आर्मी के लिए 600 हथियार बनाती हैं। लेकिन मोदी सरकार ने 275 हथियार बनाने का काम निजी कंपनियों को दे दिया है।

उन्होंने कहा कि आर्डनेंट फैक्ट्रियों का काम छीन कर निजी कंपनियों को देने की कोशिश ये सरकार कर रही है।

इंडियन नेशनल डिफ़ेंस वर्कर्स फ़ेडरेशन के ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी विनोद त्यागी ने बताया कि आर्मी की ज़रूरत का सिर्फ 30% हथियार देश में बनता है, बाकी अन्य देशों से आयात किया जाता है।

मोदी सरकार अब इस 30% को भी छीनने की कोशिश कर रही है।

आर्डनेंस फैक्ट्री कर्मचारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी सुनील त्यागी ने बताया कि मुरादनगर ऑर्डनेंस फैक्ट्री की हैंडग्रेनेड बनाने में विशेषज्ञता है।

वो कहते हैं कि यहां पहले एक साल में 8-10 लाख हैंड ग्रेनेड बनते थे लेकिन इसे नॉन कोर सेक्टर में डालकर निजी कंपनियों को बनाने के लिए दे दिया गया।

डिफ़ेंस कोरिडोर के नाम पर निजीकरण

अब यहां एक भी हैंडग्रेनेड नहीं बनता, कारखानें बंद हैं, मशीनें बंद हैं। वो कहते हैं, “डिफ़ेंस कोरिडोर के नाम पर यहां का काम छिन गया।”

उन्होंने बताया कि T-90 टैंक की चेन बनाने का यहां काम होता था और बहुत अधिक गुणवत्ता का काम होता था।

जो चेन 90 लाख रुपये में आयात की जाती थी उसे यहां 65-70 लाख रुपये में बनाया गया।

वो कहते हैं, “यहां तक कि इसकी गुणवत्ता अतिरिक्त 10,000 किलोमीटर चलने की होती थी। लेकिन अब इसका निर्माण भी बंद है।”

वर्कर्स यूनिटी  से साभार 

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