यह है आधुनिक भारत, जहाँ गटर में लगातार मर रहे हैं मज़दूर !

हरियाणा के रोहतक जिले में सीवर टैंक की सफ़ाई करने उतरे चार श्रमिकों की ज़हरीली गैस की चपेट में आने से मौत हो गई है। ये चारों लोग शहर के जन स्वास्थ्य विभाग के लिए काम कर रहे थे। इन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरण के ही टैंक में उतरना पड़ा था।

इससे पूर्व गुजरात में एक होटल के सीवर को साफ़ करते हुए सात सफाई कर्मियों की मौत हो गयी थी।

यह तो महज बानगी है। तथ्य यह है कि आज़ाद भारत में हर दूसरे-तीसरे दिन एक सफाई मज़दूर की मौत होती है।

मोदी सरकार-1 की स्वच्छ भारत अभियान पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा थी। सफाई कर्मियों के लिए यह महज जुमला साबित हुआ। ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ नामक एनजीओ के मुताबिक जनवरी 2017 से अगस्त 2018 तक 221 सफाई कर्मियों की मौत हो चुकी थी। 1993 से 2018 तक 1,760 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है।

दुनिया के कई देशों में सीवर को साफ़ करने के लिए टेक्नोलॉजी की सहायता ली जाती है लेकिन भारत में नहीं?

साल 2014 में आए सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद मोदी सरकार ने सफाईकर्मियों की मौतों को दर्ज करने का ना तो कोई तरीका ही विकसित किया है, ना ही इन मौतों को रोकने के लिए एक भी ठोस पहल शुरू की है।

ग़ौरतलब है कि सफाई कर्मियों में से 98 फीसदी अनुसूचित जाति से और महिलाएं हैं।

भारत ही ऐसा देश है जहाँ एक ग़रीब आदमी सीवर की सफ़ाई करते हुए अपनी जान गवां देता है, सिर पर मैला ढोता है और फिर भी वह अछूत कहलाता है!

(‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका, जुलाई-अगस्त, 2019 से)

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