अमानवीयता की हद पार करता बाज़ारवाद : औरतों के गर्भाशय से मुनाफ़ा

महाराष्ट्र के बिड जिले में गन्ने की खेती में काम करने वाली 4,605 महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिए जाने का एक भयावह मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे लगातार गन्ने की कटाई का काम कर सकें।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसे ऑपरेशन 2016-17 से 2018-19 के बीच 99 निजी अस्पतालों में किए गए, जिनमें ज्यादातर 25 से 30 वर्ष आयुवर्ग की महिलाएं थीं।

ऐसा केवल बिड में नहीं हुआ है, पूरे देश में ही औरतों के गर्भाशय के गैर जरुरी आपरेशन से डाक्टर व नर्सिग होम अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। ये आदमखोर औरतों को पानी जैसी हल्की सी परेशानी को भी कैंसर का हौवा खड़ा कर डरा देते हैं और औरत भयवश आपरेशन के लिए तैयार हो जाती हैं।

कम उम्र (30 से 40) में गर्भाशय निकालने से महिलाओं को सिरदर्द अवसाद, कमर दर्द, उच्च रक्तचाप, हार्मोन्स की कमी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता हैं।

औरतों का पूरा वजूद ही मेडिकल माफ़िआओं के लिए मुनाफे का स्रोत है जैसे लिन्ग जांच, गैरकानूनी गर्भपात, गैरजरूरी सीज़ेरियन आपरेशन।
तमाम सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद लड़का लड़की के लिगं जाँच जारी है। इसमें औरतों का दो स्तरों पर शोषण होता है, चोरी छिपे जाँच के नाम पर मनमानी फीस वसूली और उसके बाद 12 हप्ते से ऊपर का गर्भपात, और मनमानी धनादोहन। इस पूरी प्रक्रिया में औरतें पीड़ा, इन्फेकशन, रक्तस्राव के साथ-साथ मानसिक पीड़ा भी झेलती हैं।

ठीक इसी तरह सीज़ेरियन आपरेशन भी नर्सिंग होमों के लिए मुनाफे के स्रोत है। समय से पूर्व डिलीवरी करवाना, गर्भ में बच्चे की धड़कन कम होने, पानी कम होने, बच्चे के गले में नाल लिपटी होने जैसे भय दिखा कर आपरेशन के लिए मजबूर करना जो कभी कभी औरत के लिए जानलेवा साबित होता है। दरअसल यह इस मानवद्रोही व्यवस्था में मुनाफे की अंधी हवस की देन है। इससे मुक्ति एक मानव केन्द्रित समाज में ही संभव है।
-संध्या

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