जंगलों में आग से जनहानि, जिम्मेदार उत्तराखंड सरकार; मुआवजा व सुरक्षा की माँग, 27 जून को प्रदर्शन

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रामनगर। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पर काबू न पाने व उसमें लोगों के झुलसने एवं मारे जाने के लिए समाजवादी लोकमंच ने उत्तराखंड सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है।

मंच ने मृतकों को 50 लाख व घायलों को 25 लाख रुपए मुआवजा, आश्रित को नौकरी देने व सभी फायर वाचरों को नियमित नियुक्ति एवं जीवन रक्षक उपकरण व आग बुझाने के उपकरण उपलब्ध कराने आदि की मांग को लेकर 27 जून, बृहस्पतिवार को दिन में 11 बजे से लखनपुर चौराहे पर धरना प्रदर्शन करने की घोषणा की है।

समाजवादी लोकमंच की पैठ पड़ाव में संपन्न हुई बैठक में मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने कहा कि उत्तराखंड के जंगल और लोग आग में झुलस रहे हैं और सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी आग बुझाने की व्यवस्था करने व आग बुझाने में लगे लोगों को अग्निशमन व जीवन रक्षक उपकरण उपलब्ध कराने की जगह मीडिया में चाय बनाते हुए अपनी फोटो वायरल कर रहे हैं। भाजपा के विधायक प्रेम चंद्र हाथों में टहनी लेकर आग बुझाने की रील बना रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इस वर्ष उत्तराखंड में आग के कारण 10 लोगों की मृत्यु हो चुकी है व 17 सौ हेक्टेयर से भी अधिक वन जल चुके हैं। भारत को विश्व गुरु बनाने का दावा करने वाली भाजपा सरकार जंगलों की आग नहीं बुझा पा रही है।

विनसर क्षेत्र में आग से झुलसे लोगों के परिजनों से मिलकर लौटे ललित उप्रेती ने कहा कि फायर वाचर को न तो आग बुझाने के उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं और न ही उनको आग से बचने के लिए फायर प्रूफ वर्दी दी गई थी। सरकार ने यदि गंभीरता से काम किया होता तो वन संपदा एवं लोगों के जीवन को बचाया जा सकता था।

जमनराम ने कहा कि आग पर नियंत्रण करने में नाकाम वन प्रशासन अपनी नाकामी छुपाने के लिए वनों में आग लगने का ठीकरा बिनसर क्षेत्र के रिसाल गांव व अन्य ग्रामीणों पर फोड़ रहा है जिसे किसी भी शर्त पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

किशन शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड में वन विभाग एवं वन निगम में रखे गए फायर वाचरों को सरकार बेहद कम वेतन देती है। उन्होंने बताया कि रामनगर वन विकास निगम में रखे गए एक दर्जन से भी अधिक फायर वाचरों को अभी तक ना तो नियुक्ति पत्र मिला है और उन्हें 4 माह बाद भी वेतन नहीं दिया गया है।

सरस्वती जोशी ने कहा कि सरकारों द्वारा जंगलों से जनता के हक-हकूक समाप्त करने व जंगलों से अधिकार खत्म करने की नीति के अपनाए जाने के कारण जनता का जंगलों से रिश्ता खत्म होता जा रहा है। उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए जंगलों पर जनता का मालिकाना कायम किया जाना बेहद आवश्यक है।

बैठक में कौशल्या चुनियाल, मदन मेहता, राजेंद्र सिंह, किशन शर्मा, ललित रावत समेत दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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